भारतीय कृषि की समुन्नति की राह

भारतीय कृषि की समुन्नति की राह

जिन व्यक्तियों की आय कृषि और कृषि से संबद्ध गतिविधि से आती है, उन्हें आमतौर पर  किसान कहा जाता है । इसके अलावा  बटाईदारों, काश्तकारों, लघु, सीमांत और उप सीमांत कृषकों, बड़ी जोत वाले किसानों, मछुआरों, पशुधन और पोल्ट्री रीलर्स, पशुवादियों, छोटे बागान के किसानों के  साथ-साथ ग्रामीण और मधुमक्खी पालन, रेशम पालन और वर्मीकल्चर जैसे विभिन्न प्रकार के कृषि संबंधी व्यवसायों में लगे हुए और भूमिहीन कृषि मजदूर भी हैं ।

 

हमारे देश में कृषि अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है ।  कृषि भारत में व्यक्ति का बुनियादी व्यवसाय है और 70% से अधिक ग्रामीण भारत  कृषि पर निर्भर करता है। यह हमारी अर्थव्यवस्था में सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 17% योगदान देता है और जनसंख्या का 60% रोजगार प्रदान करता है ।

 

 

पिछले पांच दशकों के दौरान कृषि क्षेत्र में सरकार द्वारा अनेकों बदलाव हरित क्रांति, श्वेत क्रांति, पीली क्रांति और नीली क्रांति  के द्वारा किया गया  । इन क्रांतियों के बाद खाद्यान्न उत्पादन में पहले के उत्पादन से चार गुना वृद्धि हुई है और आज हमारा देश करीब करीब आत्मनिर्भर हो चूका है ।

 

 

लेकिन सरकार द्वारा किये गए तमाम पहल के बावजूद किसानों की आर्थिक सेहत में सुधार नहीं हो रहा है। अतःवर्तमान प्रधानमंत्री ने 15.08.2017 को घोषणा की है कि 2022-23 तक किसानों की आय दोगुनी की  जाएगी और इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सरकार द्वारा लगातार प्रयास किये जा रहे हैं ।

 

 

सरकार अब  मौलिक स्त्रोतों के  वृद्धि पर अपना  ध्यान केंद्रित कर रही है  जिससे किसानों की लागत में कमी आये  और साथ ही उपज की उचित दर प्राप्त हो  (नाबार्ड के अखिल भारतीय ग्रामीण वित्तीय समावेशन सर्वेक्षण के अनुसार यह दर्शाया गया है कि पिछले पांच वर्षों (2012-13 से 2016-17) के दौरान खेती से मासिक आय लगभग नियंत्रित रही है  ।  लंबे समय में एक स्थिर आय वृद्धि को बनाए रखने के लिए लगातार  उत्पादकता में वृद्धि करने का प्रयास किया जा रहा है,तथा  टीएफपी स्तर और विकास को बढ़ाने, खेती की लागत कम करने, इनपुट उपयोग दक्षता में वृद्धि, उपज का इष्टतम मुद्रीकरण, वैकल्पिक मूल्य प्राप्ति, टिकाऊ उत्पादन प्रौद्योगिकी ये कुछ ऐसे क्षेत्र है जिस पर सरकार अपना ध्यान केन्द्रित कर रही है।

 

 

इस दिशा में सरकार ने अब निम्नलिखित उपायों से किसानों की आय दोगुनी करने पर अपना  ध्यान केंद्रित किया है:-

 

  • मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना (एसएचसी) – भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा दिनांक 19.02.2015 को इस योजना की शुरुआत की गई थी। मृदा स्वास्थ्य कार्ड किसानों को भूमि की मृदा पोषक तत्वों की स्थिति प्रदान करता है और उर्वरकों की खुराक के आधार पर तदनुसार सलाह देता है और यह भी बताता है कि अधिक उपज प्राप्त करने के लिए किस प्रकार की फसल उगाई जानी चाहिए । इसे सटीक तरीके से विशिष्ट फसलों की उत्पादकता बढ़ाने के लिए शुरू किया गया है और इसका इस्तेमाल देश में 14 करोड़ होल्डिंग्स के लिए किया जाएगा।
  • यूरिया के उत्पादन में वृद्धि – सरकार ने घरेलू उत्पादन और ऊर्जा दक्षता बढ़ाने के लिए यूरिया नीति में बदलाव किया है। सरकार की गोरखपुर, बरौनी और तालचर में बंद पड़े उर्वरक संयंत्र को पुनर्जीवित करने की भी योजना है। नीम कोटेड यूरिया की शुरुआत की गई है और जो धान और गेहूं की उपज को बढ़ावा देने और यूरिया की कालाबाजारी पर अंकुश लगाने के लिए एक सार्थक प्रयास है ।
  • प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई)- भारत सरकार ने दिनांक 01.07.2015 को पीएमकेएसवाई की घोषणा की है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य क्षेत्र स्तर पर सिंचाई में निवेश कम करना, सुनिश्चित सिंचाई कृषि योग्य क्षेत्र का विस्तार करना, पानी की बर्बादी को कम करने के लिए हर  खेत के लिए पानी के उपयोग में सुधार करना है। यह संसाधनों का बेहतर उपयोग सुनिश्चित करने और कृषि उत्पादकता में सुधार के लिए एक राष्ट्रीय मिशन है । इस योजना के तहत जल का उपयोग ठीक ढंग से करना  हैI
  • खेती को गैर-कृषि और सहायक गतिविधियों में स्थानांतरित करना – हमारे देश में 84 प्रतिशत कृषि जोत दो हेक्टेयर से कम है । इनमें से अधिकांश जोत ग्रामीण रोजगार और आय में गिरावट के परिणामस्वरूप व्यवहार्य नहीं हैं ।इसलिए किसानों को लकड़ी के औजारों, फर्नीचर, बांस और गन्ने के सामान के निर्माण, चमड़े की वस्तुओं का निर्माण, वस्त्रों पर लोक चित्रकला, लकड़ी की नक्काशी, पत्थर की नक्काशी, गुड़िया और खिलौनों की तैयारी, कालीनों, कुम्हारों और मिट्टी से जुड़े निर्माण और कृषि आधारित उत्पादों की प्रसंस्करण में ध्यान केंद्रित कराना और प्रशिक्षण की व्यबस्था करना  । उक्त सभी मदों की शहरी क्षेत्रों में अत्यधिक मांग है। इसलिए सरकार ने राष्ट्रीय गोकुल मिशन शुरू किया  है। इस योजना के तहत सरकार पशु विकास केंद्र पर भी  ध्यान केंद्रित कर  किसान को प्रोत्साहित करने के लिए सब्सिडी भी दे रही है  ।
  • प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना – बाढ़,आंधी,ओले जैसी प्राकृतिक आपदाओं से किसान को अत्यधिक नुक्सान उठाना पड़ता है और इस कारण वो महाजनों के चंगुल में फंसे रहते हैं। अतः किसानों को ऐसे संकट से निकालने के लिए केंद्र सरकार ने दिनांक 13 जनवरी 2016 को इस योजना को लागु किया ।इसके तहत किसानों को खरीफ की फसल के लिए 2% प्रीमियम और रबी के लिए 5% प्रीमियम का भुगतान करना पड़ता है ।अब तो किसानों की सुविधा के लिए सरकार ने एंड्राइड आधारित ऐप भी शुरु किया है जिससे उन्हें घर बैठे सारी जानकारी मिल सकेगी ।
  • कटाई के बाद के उपाय – वर्ष 2018 के दौरान फसल और फसल के बाद नुकसान लगभग 13 अरब डॉलर था । यह नुकसान मुख्य रूप से भंडारण, रसद और वित्तपोषण बुनियादी ढांचे की अपर्याप्तता के कारण होता है । कम भंडारण के कारण किसानों को अपने खेत से ही  फसलों को बेचना पड़ता है परिणामस्वरूप उन्हें फसल का उचित मूल्य नहीं मिलता है। यदि  कृषि प्रसंस्करण, भंडारण, कोल्ड चेन,की सुविधा किसानों को मुहैया करा दिया जाये तो वो अपने आप को डिस्ट्रेस सेल से बचा पाएंगे । इस कारण सरकार भी  ग्रामीण शीत गृह  के निर्माण, कोल्ड स्टोरेज बनाने को प्रोत्साहित कर रही है और  सब्सिडी भी  दे रही है।
  • बाजार सुधार – कृषि उत्पाद जल्द ख़राब हो जाते हैं, इसलिए समय पर बेचने में विफलता के परिणामस्वरूप फसल की बर्बादी और कीमतें भी काफी कम मिलती हैं, जो मौसम में परिवर्तन से भी  प्रभावित होती हैं। किसान अपने  उत्पादों के लिए लागत का कम से 150% कीमत की  तलाश में  रहते हैं । किसानों की सुरक्षा के लिए भारत में राज्य सरकार ने एक कृषि उपज बाजार समिति की स्थापना की है और केंद्र सरकार ने भी कृषि उत्पादन के लिए समय-समय पर न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित किया है  । एपीएमसी, ईएनएएम के साथ जुड़ा हुआ है, जो एक राष्ट्रीय कृषि बाजार है तथा  एक पैन इंडिया इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग पोर्टल है।  एपीएमसी को ईएनएएम से लाभ मिलता है, किसान विधेयक, 2020 किसानों को एपीएमसी के तहत अधिसूचित बाजारों के भौतिक परिसरों के बाहर उपज के मुक्त व्यापार करने  की अनुमति देता है। विधेयक में राज्य सरकार और एपीएमसी को कोई बाजार शुल्क, उपकर या अन्य कोई शुल्क लगाने पर भी प्रतिबंध लगाया गया है ।  इस विधेयक में किसानों की उपज की ऑनलाइन बिक्री और खरीद के लिए इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म स्थापित करने का प्रावधान है । विधेयक में यह भी प्रावधान किया गया है कि किसानों की उपज का भुगतान तीन दिन के भीतर किया जाना चाहिए ।
  • असमानता के अंतर को पूरा करें -किसान और गैर किसान के बीच आय का अंतर बहुत ज्यादा है जबकि  शहरों की तुलना में गांव का  जीवन स्तर बहुत ही निम्न है ।अतः विकास सभी क्षेत्र में बराबर होना चाहिए जो कृषि कार्यों में युवा पीढ़ी को भी आकर्षित करेगा।
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किसानों की बेहतर आजीविका के लिए खेती को एक उद्यम के रूप में देखा  जाना चाहिए और इनके विकास के लिए  बजट भी  उनके  अनुसार होना चाहिए । बजट में लाभप्रद रोजगार पैदा करने के लिए ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए तथा  किसानों को अधिक से अधिक  आर्थिक रूप से सुरक्षित बनाने के लिए  उन्हें कृषि और कृषि से जुड़े बिभिन्न कार्यो के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए । हमारे कृषि  प्रौद्योगिकी को भी  वैश्विक मानक के अनुसार होना चाहिए । कृषि शिक्षा को अद्यतन और नवीनतम परिवर्तनों के अनुसार किया जाना चाहिए ।

 

 

 

सुनील कुमार आजाद,

सहायक महाप्रबंधक (निदेशक),

भारतीय स्टेट बैंक ज्ञानार्जन एवं विकास संस्थान,

देवघर(झारखंड)

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