ई -कचरा: स्वास्थ एवं पर्यावरण

ई -कचरा: स्वास्थ एवं पर्यावरण

प्रदूषण की समस्या दशकों से सारे विश्व के लिए चिंता का विषय है, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस समस्या का हल करने के लिए अनेकों नियम बनाए गए हैं, किंतु विकास के नाम  पर हमेशा इन नियमों को दरकिनार किया जाता रहा है। आज के आधुनिक दौर  में इलेक्ट्रॉनिक और इलेक्ट्रिक सामान के बढते उपयोग से पैदा होने वाला ई-कचड़ा पर्यावरण एवं मानव स्वास्थ के लिए एक बड़ी चुनौती है। विडंबना यह है कि ई-कचरे के दुष्प्रभाव से भारत ही नहीं अपितु विश्व के अन्य विकासशील देशों के ज्यादातर लोग अनभिज्ञ है।  एसोचैम की रिपोर्ट  “इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट मैनेजमेंट इन इंडिया” में अनुमान लगाया गया है कि 2021 तक भारत लगभग 5 मिलीयन टन ई-कचरे का उत्पादन करेगा। ई-कचरे के उत्पादन में भारत, चीन एवं अमेरिका के बाद विश्व में तीसरे नंबर पर है। भारतीय राज्यों में महाराष्ट्र सबसे ज्यादा ई-कचरा पैदा करने वाला राज्य है, जबकि तमिलनाडु दूसरे एवं उत्तर प्रदेश तीसरे स्थान पर है।  भारत में इलेक्ट्रॉनिक और इलेक्ट्रिक सामानों जैसे कंप्यूटर एवं उसके उपकरणों, मोबाइल फोन, फ्रिज, टीवी, ट्यूबलाइट, बल्ब, सीएफएल इत्यादि के बढते उपयोग एवं इसके निस्तारण के उचित प्रबंधन के अभाव में  ई- कचरे की समस्या आने वाले दिनों मे एक विकराल रूप धारण कर पर्यावरण एवं मानव स्वास्थ के लिए एक बड़ी चुनौती का रूप ले रही है।

 

 

यहाँ हम सामझेंगे कि ई-कचड़ा क्या है, एवं यह पर्यावरण एवं मानव स्वास्थ को कैसे प्रभावित करता है :

 

इस्तमाल में न आने वाले पुराने एवं  टूटे-फूटे इलेक्ट्रॉनिक और इलेक्ट्रिक सामान ई-कचरा कहलाते हैं। इलेक्ट्रॉनिक एवं इलेक्ट्रिक सामानों को बनाने वाली सामग्रियों में ज्यादातर कैडमियम, निकेल, पारा, क्रोमियम, सीसा इत्यादि धातुओं का इस्तेमाल होता है। इन धातुओं को जलाने से निकलने वाली विषैली गैस पर्यावरण को दूषित कर देती है, जिसका सीधा प्रभाव मानव स्वास्थ्य पर पड़ता है। उदाहरण के तौर पर बच्चों के खेलने वाले आधुनिक खिलौने में इस्तेमाल होने वाली बैटरी विभिन्न तरह के विषैले रसायनों से मिलकर बनती है और  उसको तोड़ने पर उससे निकली विषैली रसायन पर्यावरण को बुरी तरह प्रभावित करती है।

 

ई- कचरे में बहुमूल्य धातुएं जैसे तांबा, सोना, चाँदी, एलुमिनियम आदि पाए जाते हैं।  इन बहुमूल्य धातुओं को इससे निकालने के लिए निष्पादन के असुरक्षित तौर-तरीकों का इस्तमाल किया जाता है एवं इस कार्य को ज्यादातर समाज के निचले तबके के लोग करते हैं , जिन्हें इसके निष्पादन के फलस्वरूप निकलने वाले धूओं और रसायनों के दुष्प्रभाव की तनिक भी जानकारी नहीं होती है।  बिना सुरक्षा उपकरणों के काम करने से ये  लोग विभिन्न तरह की गंभीर बीमारीयों के शिकार हो जाते हैं। सीसे के निष्पादन में प्रति वर्ष लाखों लोग इसके चपेट में आकर जान  से हाथ धो बैठते हैं।  अवैज्ञानिक पद्धति से ई-कचरे को तोड़ने पर उसके घातक  घटक तत्व बाहर निकलते हैं और काम में लगे लोगों के स्वास्थ्य को बुरी तरह प्रभावित करते हैं। आमतौर पर यह पाया गया है कि ई-कचरे के निस्तारण की प्रक्रिया में, इसे तोड़ने के काम में खतरा अपेक्षाकृत कम है लेकिन जब इसे पुन: चक्रित किया जाता है तो इस क्रिया में इसे जलाने एवं एसिड आदि के उपयोग से निष्पादन करने में  खतरा कई गुना बढ़ जाता है। जलाने एवं एसिड के प्रयोग से निकलने वाले जहरीले गैस एवं माइक्रो कण  मनुष्य के अंग जैसे फेफड़ा, किडनी, हृदय  आदि पर गंभीर असर डाल उसे नुकसान पहुँचाते हैं।

 

 

ई-कचड़े के निष्पादन के तरीके : ई-कचड़े के निष्पादन के दो तरीके हैं :

 

1. परंपरागत तरीका : इस तरीके में ई-कचड़े को शहरों से लाकर खुली जगहों में अवैज्ञानिक पद्धति द्वारा छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ने का कम किया जाता है एवं अवैध तरीके से इसे जलाकर इससे बहुमूल्य धातुएँ एकत्र किये जाते है। इस प्रक्रिया में एकत्र हुआ राख़, जिसमें विभिन्न प्रकार के बहुमूल्य धातुओं के साथ-साथ जहरीली धातुएँ भी उपस्थित होती है। इन जहरीली धातुओं को साधारणत: नदी-नालो में बहा दिया जाता है, जो जल एवं वायु प्रदूषण का मुख्य कारण बन जाता है।

 

लैंडफिल पद्धति : इस विधि के द्वारा ई-कचड़े को जमीन में दबा दिया जाता है, जिससे इसमें उपस्थित हानिकारक  रसायन धीरे-धीरे रिस कर मिट्टी और पानी में मिल कर मिट्टी की उर्वरता को खत्म कर देता है एवं पानी में मिलकर फूडचैन में प्रवेश कर मानव स्वास्थ पर गंभीर प्रभाव डालता है।

 

2. वैज्ञानिक पद्धति: ई-कचड़े के दुष्प्रभाव से पर्यावरण को बचाने एवं इसके महत्व को समझते हुए भारत सरकार ने सर्वप्रथम 2011 में ई-अपशिष्ट (प्रबंधन और हैंडलिंग) नियम लाया तदुपरान्त अक्तूबर 2016 में पर्यावरण, वन तथा जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के द्वारा “ई-कचरा प्रबंधन नियम, 2016”, लागू किया गया। यह नियम निर्माता, उत्पादनकर्त्ता, उपभोक्ता, विक्रेता, अपशिष्ट संग्रहकर्त्ता, उपचारकर्त्ता व उपयोग- कर्त्ताओं आदि सभी पर लागू किया गया है। इस  नियम की  कुछ मुख्य बातें जो ई-कचड़े के प्रबंधन में सहायक होंगे निम्न है: 

 

  • जमा केंद्र : इस नियम के तहत उत्पादनकर्त्ता अकेले या रीसाइक्लिंग (पुनर्चक्रण) एजेंसियों के साथ मिलकर ई-कचड़े को इकट्ठा करने के लिए जमा केंद्र की व्यवस्था करते है।  जमा केंद्र, पुन: इसे अधिकृत पुनर्चक्रण एजेंसियों  तक भेजने की व्यवस्था करता  है, जहाँ  वैज्ञानिक पद्धति से सरकार द्वारा अधिकृत एजेंसियाँ इसका निष्पादन करती है। 
  • केन्‍द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के द्वारा उत्‍पादों की औसत आयु समय-समय पर निर्धारित की जाती हैं ।
  • इस नियम के तहत उत्पादनकर्त्ता की  उत्पादों के औसत आयु के खत्म हो जाने पर उत्पादों को पुन: वापस लेने एवं उसका नियमो के तहत पुनर्चक्रण करने की व्यवस्था का प्रावधान किया गया है।
  • इन नियमों को पालन नहीं करने पर जुर्माना का भी प्रावधान है ।

 

 

        उत्पादनकर्त्ता                      Right Arrow Of Straight Lines Comments - Right Arrow Key , Free Transparent  Clipart - ClipartKey           उपभोक्ता

      Arrow Computer Icons Font Awesome, up arrow, angle, internet, arrow Keys  png | PNGWing                                                 Arrow Directory Page Up And Page Down Keys, PNG, 1200x630px, Directory,  Arrows, Black And White, Chart, 

     रीसाइक्लिंग एजेंसियाँ            Free Icon | Left arrow key                जमाकेन्द्र

 

 

 

बायबैक के जरिए उत्पादनकर्त्ता अपने पुराने इलेक्ट्रॉनिक और इलेक्ट्रिक सामान को उपभोक्ता से वापस ले सकता हैं।  ई-कचड़े के प्रबंधन का यह तरीका बहुत ही कारगर साबित हो सकता है। इसके अलावा आम-जनता में ई-कचड़े से होने वाली हानी के बारे में जागरूकता फैलाने की जरूरत है। इस कार्य में सरकार के साथ-साथ समाजसेवी संस्थान का योगदान भी बहुत जरूरी है। यह जरूरी है कि लोग पुराने  इलेक्ट्रॉनिक और इलेक्ट्रिक समान के अवैज्ञानिक पद्धति से निष्पादन करने पर  पर्यावरण एवं स्वास्थ पर पड़ने वाले कुप्रभाव  के बारे में जानें, तथा ई-कचड़े को आम कूड़ा लेने वालों  को ना बेचें।

 

ऊपर वर्णित बातों से हम निष्कर्ष निकाल सकते है की ई-कचड़े कि समस्या का निदान सरकार द्वारा बनाए गए कानून का सख्ती से पालन करने एवं समाज में इसके प्रति जागरूकता फैलाने से ही हो सकता है। अगर हम आज इसके प्रति जागरूक नहीं होंगे तो हमारे तथा हमारे बच्चों का स्वास्थ संकट में आ सकता है।  

 

 

 

निलम कुमारी

मुख्य प्रबंधक

भारतीय स्टेट बैंक ज्ञानार्जन एवं विकास संस्थान ,पटना

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