कृषि बिल : संवैधानिक या असंवैधानिक

कृषि बिल : संवैधानिक या असंवैधानिक

भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान यद्यपि 15.87% ही है, किन्तु रोजगार सृजन में इसका योगदान लगभग 50% है, खासकर ग्रामीण जनसंख्या की जीविका का यह महत्वपूर्ण साधन है |  दूसरे विकसित देशों की तुलना में हमारे देश के किसानों की आर्थिक स्थिति अति- दयनीय है |  भारत सरकार समय-समय पर विभिन्न योजनाओं के माध्यम से किसानों एवं कृषि के विकास के लिए अनेक महत्वपूर्ण कदम उठाती रही है |

 

सरकार ने किसानों की आर्थिक स्थिति को सुधारने एवं उनकी आय को वर्ष 2022 तक दोगुनी करने का  लक्ष्य निर्धारित किया है। कृषि कानून इस दिशा में सरकार द्वारा उठाया गया एक कदम है।  भारतीय कृषि कानून लोकसभा में 17/9/2020 को पारित हुआ एवं राज्यसभा में 20/9/2020 को पारित हुआ, लेकिन ज्यादातर किसान एवं राजनीतिक दल इस बिल के खिलाफ पूरे देश में विरोध प्रदर्शन करने लगे, यहां तक कि कुछ लोगों ने इस बिल को असंवैधानिक करार देते हुए सर्वोच्च न्यायालय में इस कानून के खिलाफ याचिका दायर कर दिया।  मामला अभी सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है फिर भी इस विषय पर चर्चा उचित है जिससे धुंध खत्म हो।

 

 

कोई भी कानून संवैधानिक है या नहीं यह दो बातों पर निर्भर करता है, प्रथम उस कानून का विषय क्या है और दूसरा, कानून बनाने की प्रक्रिया संविधान में वर्णित कानून बनाने की प्रक्रिया के अनुरूप है कि नहीं।

1) विषय वस्तु                     2) संसद द्वारा  कानून को पास करने की प्रक्रिया

 

विषय वस्तु के आधार पर संवैधानिकता: कोई भी  कानून हमारे संविधान के प्रावधान के अंतर्गत होनी चाहिए यानी संविधान से सुसंगत होनी चाहिए ।  इसका अर्थ है कि संसद द्वारा बनाया गया कानून, अगर संविधान में लिखी बातों के विरुद्ध जाता है तो वह कानून चाहे संविधान बनने के पहले बना हो या संविधान बनने के बाद बना हो उस भाग तक शून्य हो जाता है जिस भाग तक संविधान में लिखी बातों के विरुद्ध जाता है।

  • नया कृषि कानून किसी के मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन नहीं करता है अतः इस दृष्टि से वह असंवैधानिक करार नहीं दिया जा सकता है।
  • कोई भी कानून अगर संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ है तो भी वह असंवैधानिक करार दिया जाता है। इस विषय पर कुछ लोगों का मानना है कि नया कृषि कानून संघवाद की नीति के खिलाफ है एवं संघवाद संविधान के मूल ढांचे में शामिल होता है। संघवाद, संवैधानिक राज संचालन की उस प्रवृति का प्रारूप है जिसके अनुसार संघीय एवं राज्यसरकारों के मध्य प्रभुसत्ता का विभाजन होता है। सातवीं अनुसूची, संविधान के अनुच्छेद 246 के तहत राज्य और संघ के मध्य के अधिकारों को उल्लेखित करती है। सातवीं अनुसूची में तीन सूचियां है: 1. संघ सूची राज्य सूची  3.समवर्ती सूची।
  • संघ सूची में वर्णित विषयों पर कानून बनाने का अधिकार सिर्फ संघ को है जबकि राज्य सूची में वर्णित विषयों  पर कानून बनाने का अधिकार सिर्फ राज्यों को है, समवर्ती सूची पर कानून बनाने का अधिकार संघ एवं राज्य दोनों को है।
  • राज्य सूची के क्रमांक संख्या 14 के तहत कृषि एवं इससे जुड़े विषय, क्रमांक संख्या 26 के तहत व्यापार एवं वाणिज्य तथा क्रमांक संख्या 27 के तहत उत्पादन,आपूर्ति एवं वितरण पर कानून बनाने का अधिकार सिर्फ राज्य को ही है, लेकिन भारतीय संविधान के तीसरे संशोधन के अंतर्गत समवर्ती सूची की 33वीं प्रविष्टि में खाद्यान्न, पशुओं के लिए चारा, कच्चा कपास आदि के उत्पादन एवं आपूर्ति को लोकहित में समझने पर संघ सरकार उस पर नियम बना सकती है।  राज्य सूची के विषय क्रमांक 26 एवं 27 को समवर्ती सूची के 33वीं  प्रविष्टि के उपबंधों के अधीन रखा गया है।  इससे स्पष्ट होता है कि 1954 में हुए संविधान के तीसरे संशोधन के अनुसार कृषिविधेयक पर विधि  बनाने का अधिकार समवर्ती सूची के प्रविष्टि 33 के अंतर्गत संघ या संसद को भी है।

 

संविधान के अनुच्छेद 254 के तहत समवर्ती सूची के विषयों पर संसद द्वारा पारित किसी भी कानून का  राज्य सरकारों द्वारा विरोध होने पर भी संसद द्वारा पास कानून को ही प्राथमिकता दी जाएगी।  ऊपर वर्णित कारणों से प्रतीत होता है की नया कृषि कानून संघवाद के खिलाफ प्रतीत होता नहीं दिख रहा है।  अत: संघवाद के आधार पर इस कानून को  असंवैधानिक करार देना थोड़ा मुश्किल लग रहा है।

 

  1. कानून बनाने की प्रक्रिया की संवैधानिकता: 5 जुलाई 2020 को सरकार ने कृषि से संबंधित तीन अध्यादेश जारी किए एवं लोकसभा द्वारा 17/09/2020 को एवं राज्यसभा द्वारा 20/9/2020 को ध्वनि मत से पास करवाया। इस बिल को बनाने एवं संसद से पारित कराने के क्रम में संविधान द्वारा वर्णित प्रक्रिया का पूर्ण रूपेण पालन किया है या नहीं इसका विश्लेषण निम्नलिखित है:
  • जब संसद का सत्र नहीं चल रहा हो और देश हित में सरकार को कोई कानून बनाना जरूरी हो तो संविधान के अनुच्छेद 122 के तहत सरकार राष्ट्रपति की सहमति से कोई भी अध्यादेश जारी कर सकती है, जिसे संसद का सत्र आरंभ होने के 6 सप्ताह के अंदर दोनों सदनों के द्वारा पास कराना जरूरी होता है। नया कृषि अध्यादेश 5 जून 2020 को राष्ट्रपति के आदेश से लागू हुआ एवं लोकसभा में दिनांक 17/09/2020 को बहुमत से पारित हुआ क्योंकि लोकसभा में सरकार बहुमत में है।
  • यह बिल राज्यसभा में दिनांक 20/09/2020 को ध्वनि मत से पारित हुआ, किन्तु इसके पारित होने पर कुछ विपक्षी दलों ने प्रश्नचिन्ह खड़े किए। यहाँ हम उन परिस्थितियों का  विश्लेषण करेंगे जिसके तहत यह बिल राज्य सभा में पारित हुआ।
  • 20 सितंबर 2020 को राज्यसभा में सांसदों की उपस्थित अन्य दिनों की तुलना में कम थी, क्योंकि कुछ विपक्षी दलों के सदस्य कोरोना से संक्रमित थे या कोरोना के भय से सदन से अनुपस्थित थे। लेकिन  सत्ता पक्ष के अधिकतम सांसद उस दिन राज्यसभा में उपस्थित थे। कोरोना संक्रमण की वजह से सभी सांसद पहले से आवंटित अपनी  सीट पर नहीं बैठकर  6 गज की दूरी बनाते हुए बैठे थे। चूँकि वोटिंग मशीन सांसदों के आवंटित सीट पर लगा रहता है और सांसद उस दिन अपने आवंटित सीट पर नहीं बैठे थे इसलिए राज्यसभा के उपसभापति महोदय ने उस दिन वोटिंग के बजाए ध्वनि मत से कृषि बिल को पास किए।

संविधान के अनुच्छेद 122 के तहत संसद की किसी कार्यवाही की विधिमान्यता की प्रक्रिया की किसी अभिकथित अनियमितता के आधार पर प्रश्नगत नहीं किया जाएगा दूसरा संसद का कोई अधिकारी या सदस्य,जिसमें इस संविधान द्वारा या इसके अधीन संसद में प्रक्रिया या कार्य संचालन का विनियमन करने की अथवा व्यवस्था बनाए रखने की शक्तियां निहित हैं, उन शक्तियों के अपने द्वारा प्रयोग के विषय में किसी न्यायालय की अधिकारिता के अधीन नहीं होगा। इससे स्पष्ट होता है की न्यायालय द्वारा संसद की कार्यवाहीयों की जांच नहीं की जाएगी। 

 

 

ऊपर वर्णित विश्लेषण के आलोक में हम तीनों कृषि बिल 2020 का विश्लेषण करेंगें :

  1. कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) बिल 2020: इस कानून के तहत किसान अब एपीएमसी(APMC) मंडियों के बाहर किसी को भी अपनी उपज बेच सकता है, जिस पर कोई शुल्क नहीं लगेगा, जबकि एपीएमसी मंडियों में कृषि उत्पादों की खरीद पर विभिन्न राज्यों में अलग-अलग मंडी शुल्क व अन्य उपकर हैं।  इस विधि से किसी भी किसान के मूलभूत अधिकारों का हनन नहीं होता है।
  2. मूल्य आश्वासन एवं कृषि सेवाओं पर कृषक ( सशक्तिकरण एवं संरक्षण ) अनुबंध विधेयक 2020: इस बिल में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का प्रावधान  किया गया है, जिससे किसानों को खेती के लिए आवश्यक बीज, सिंचाई, उर्वरक इत्यादि समय पर अनुबंध के तहत कॉन्ट्रैक्टर से मिल जाएगा और किसान कंपनियों को अनुबंध के तहत मूल्यों पर अपने फसलों को बेच सकेंगें। इससे किसानों की आय बढ़ेगी एवं बिचौलिया राज खत्म होगा।  इसके तहत फसलों के खराब होने पर उसके नुकसान की भरपाई किसानों को नहीं, अपितु अनुबंध करने वाली कंपनियों को वहन करना होगा। अत: यह बिल भी राज्य सूची के विषय क्रमांक 26 एवं 27 समवर्ती सूची के 33वीं  प्रविष्टि के उपबंधों के अधीन ही बनाया गया है।
  3. आवश्यक वस्तु संशोधन बिल 2020: इस  बिल के तहत कुछ कृषि उत्पाद जैसे खाध तेल, दाल, प्याज,आलू आदि पर से स्टॉक लिमिट हटा दी गई है एवं  उत्पादन, स्टोरेज और वितरण पर सरकारी नियंत्रण खत्म कर दिया  जाएगा। पुन: यह  बिल भी ऊपर वर्णित संविधान के प्रावधानों के अंतर्गत ही आता है।

ऊपर वर्णित विश्लेषण के आलोक में नया कृषि बिल 2020 संवैधानिक प्रतीत होता है।

 

 

 

निलम कुमारी

मुख्य प्रबंधक

भारतीय स्टेट बैंक ज्ञानार्जन एवं विकास संस्थान ,पटना

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