कर्मचारियों के स्वास्थ्य एवं उत्पादकता में सम्बन्ध

कर्मचारियों के स्वास्थ्य एवं उत्पादकता में सम्बन्ध

किसी भी संस्था में उसके कर्मचारी ही उसके मुख्य कर्ताधर्ता होते हैं। संस्था के मालिक या शेयर धारकया हितधारकों की हमेशा यह इच्छा होती है कि संस्था उन्नति करे एवं लाभप्रद भी हो। लेकिन सिर्फ इच्छा मात्र से ही लक्ष्यों की प्राप्ति नहीं हो सकती है। अगर संस्था को आगे बढ़ना है, अपनी उत्पादकता बढ़ानी है, तो उसके कर्मचारियों का योगदान सर्वोपरि होता है। यही कारण है कि हर संस्था यह चाहती है कि वह अपने लिए सर्वश्रेष्ठ कर्मचारियों का चयन करे जो उसकी उत्पादकता में उत्तरोत्तर वृद्धि करें। परंतु अन्य कारकों के साथ-साथ कर्मचारियों की कुशलता एवं उत्पादकता को प्रभावित करने वाला एक महत्वपूर्ण कारक है उनका स्वास्थ्य। अगर किसी कर्मचारी का शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य अच्छा न हो तो वह चाहकर भी अपने कार्यों को कुशलतापूर्वक संपादित नहीं कर सकता। अगर हम खुद अपने बुरे स्वास्थ्य से परेशान हों तो हम अपनी संस्था की उत्पादकता में यथोचित योगदान नहीं दे सकते। कर्मचारियों के अच्छे स्वास्थ्य का महत्व अन्यक्षेत्रों में तो है ही, साथ ही सेवा क्षेत्र में इसकी भूमिका और भी महत्वपूर्ण है। सेवा क्षेत्र में उत्कृष्ट ग्राहक सेवा बहुत मायने रखती है। इस क्षेत्र में जैसे- एयरलाइंस,बैंक,इंश्योरेंस आदि में ग्राहकों के पास अनेक विकल्प मौजूद रहते हैं। अगर उन्हें उत्कृष्ट सेवा नहीं मिले तो वे शीघ्र ही दूसरी संस्था की ओर उन्मुख हो जा सकते हैं। वर्तमान के इस उत्तरोत्तर बढ़ती प्रतियोगिता भरे माहौल में संस्थाओं को अपनी सेवाओं की गुणवत्ता हमेशा बनाए रखनी होती है।

 

 

 

ग्राहकों को सारी सेवाएं चूंकि कर्मचारियों के द्वारा ही प्रदान की जानी हैं, अतः उनका योगदान बहुत ही अहम हो जाता है। किंतु आज के भागदौड़ वाले माहौल में कर्मचारियों का स्वास्थ्य बुरी तरह प्रभावित हुआ है। शारीरिक और मानसिक दोनों ही स्तरों पर कर्मचारियों के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। उनके खराब स्वास्थ्य का सीधा असर उनकी उत्पादकता एवं ग्राहक सेवा पर पड़ता है। उनके स्वास्थ्य से संबंधित समस्याओं के कई कारण हो सकते हैं, यथा- प्रदूषित वातावरण,गलत खान-पान, शारीरिक श्रम का अभाव, गलत जीवनशैली, कार्यस्थल पर तनाव पूर्ण माहौल आदि । शुरुआत में हम लोग अपने स्वास्थ्य को नजरअंदाज करते हैं और रोग ग्रस्त हो जाते हैं। एक बार रोग के चंगुल में फंसने के उपरांत हमारे प्रयास करने के बावजूद हम उस से निकल नहीं पाते हैं। व्यक्ति जब बीमार पड़ता है तो उसका पूरा परिवार परेशान हो जाता है। कई बार तो बड़े-बड़े अस्पतालों में इलाज करवाना पड़ता है। व्यक्ति और उसका परिवार शारीरिक, मानसिक और आर्थिक तीनों ही दृष्टियों से प्रभावित हो जाता है। कई बार तो पूर्व की जमापूंजी जो की भविष्य की अन्य योजनाओं के लिए संजों कर रखी होती है, वह भी खर्च हो जाती है। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि तमाम प्रयासों के बावजूद उनकी जान नहीं बच पाती है। कई संस्थाएं अपने कर्मचारियों के चिकित्सा व्यय का काफी हिस्सा अपनी ओर से खर्च करती हैं, किन्तु इसके बावजूद भी कर्मचारियों को भी आर्थिक बोझ उठाना पड़ता है। इसका कारण यह है कि चिकित्सा व्यय के अलावा भी कई तरह के खर्च उठाना पड़ता है, यथा- यात्रा खर्च, रहने का खर्च आदि।कर्मचारियों के खराब स्वास्थ्य का संस्थाओं को दोहरा नुकसान उठाना पड़ता है। एक ओर तो उनकी उत्पादकता प्रभावित होती है और दूसरी ओर उनके चिकित्सा व्यय की वृद्धि होती है। इन दोनों ही कारणों से संस्था की लाभप्रदता भी प्रभावित होती है।

 

 

कहा जाता है कि “प्रिवेंशन इज बेटर देन क्योर”अर्थात रोकथाम इलाज से बेहतर है।हमें हमारे स्वास्थ्य का ख्याल पूरी तरह रखना चाहिए, अन्यथा हमारी हालत वैसी ही हो जाएगी, जैसे-“अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत”। जब हम शारीरिक और मानसिक रूप से पूर्ण स्वस्थ होंगे तभी हम कार्यस्थल पर उत्कृष्ट प्रदर्शन कर पाएंगे और हमारा जीवन भी आनंददायक होगा। कहा भी जाता है,“स्वास्थ्य ही धन है” एवं “ पहला सुख निरोगी काया”। ये कहावतें हमें संदेश देती हैं कि हम स्वास्थ्य के प्रति जागरूक रहें, अन्यथा तमाम काबिलयतों एवं इरादों के बाद भी हम कोई कार्य नहीं कर सकते हैं, क्योंकि हमारा शरीर उस स्थिति के लिए तैयार नहीं होगा।

 

 

निम्नलिखित विधियों का पालन कर हम अपने स्वास्थ्य को बेहतर रख सकते हैं:-

 

 

1. योग को अपनाना:- हमें आसन, प्राणायाम एवं ध्यान को अपनी दिनचर्या में शामिल करना चाहिए। इनसे हमारा शारीरिक स्वास्थ्य तो अच्छा होगा ही साथ ही मानसिक स्वास्थ्य भी उत्कृष्ट होगा। योगासन, जैसे- सूर्य नमस्कार,भुजंगासन, शलभासन, मक्रासन,त्रिकोनासन, मंडूक आसन आदि हमारे शारीरिक स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभदायक साबित होंगे। प्राणायाम, जैसे- भस्त्रिका, कपालभाति, अनुलोम- विलोम, नाड़िशोधन,भ्रामरी आदि हमारे शारीरिक एवं मानसिक दोनों स्वास्थ्य के लिए लाभदायक हो सकते हैं । 5 से 15 मिनट का ध्यान प्रतिदिन करने से हम तनाव मुक्त एवं प्रसन्न चित्त रह सकते हैं । अगर हम प्रफुल्लित होंगे तो हमारी उत्पादकता एवं सेवा की गुणवत्ता भी उत्कृष्ट होगी। बेहतर तरीके से योग करने हेतु किसी प्रशिक्षित योग शिक्षक से परामर्श लेना उचित होगा।

 

 

2. सुबह की सैर:- कहा जाता है कि “वाकिंग इज द बेस्ट एक्सरसाइज” अर्थात टहलना सबसे अच्छा व्यायाम है। प्रतिदिन सुबह खुली हवा में सैर करने से हम निश्चित रूप से अपने स्वास्थ्य को अच्छा रख सकते हैं। इससे अनगिनत लाभ हैं, जैसे- शरीर को शुद्ध ऑक्सीज़न कीप्राप्ति, हृदय का स्वस्थ रहना, अच्छी पाचन शक्ति, भूख खुलकर लगना, मधुमेह में लाभ आदि।

 

 

3.प्राकृतिक चिकित्सा का पालन:- प्राकृतिक चिकित्सा के तहत छोटी-छोटी चीजों के काफी दूरगामी सकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं। जैसे- सुबह जल्दी उठना,सुबह- सुबह जल ग्रहण करना, भोजन करने के 1 घंटे के बाद ही जल का सेवन करना, रात्रि काल में फल एवं सलाद का सेवन नहीं करना,अधिक तेल मसाले का सेवन नहीं करना आदि।अब हम एक चीज को थोड़ा बारीकी से देखते हैं। जब हम भोजन ग्रहण करते हैं तो मुँह के बाद वह अमाशय में जाता है, जहाँ उसका अम्लीय माध्यम में पाचन होता है। अगर हम भोजन करते समय या भोजन के तुरंत बाद जल ग्रहण करते हैं तो अम्ल की तीव्रता कम हो जाएगी। इससे भोजन ठीक से पचेगा नहीं। अब अगर भोजन पचेगा नहीं तो सड़ेगा और हमें गैस, एसिडिटी आदि नकारात्मक प्रभावों का सामना करना पड़ सकता है।प्राकृतिक चिकित्सा एक जीवनशैली है जिसका पालन कर हम काफी लाभ उठा सकते हैं।

 

 

 

4.व्यायामशाला (जिम) जाने की आदत:- कुछ लोगों को जिम जाना अच्छा लगता है। उन्हें प्रशिक्षित जिम शिक्षक से सीख कर उसे नियमित रूप से अपनी दिनचर्या में शामिल करना चाहिए। इससे वे तंदुरुस्त बने रहेंगे और उनकी उत्पादकता में भी वृद्धि होगी । जिम जाने में सबसे बड़ी कमी दृष्टिगोचर होती है कि लोग प्रवेश तो ले लेते हैं लेकिन निरंतरता नहीं बना पाते, फलस्वरूप उन्हें पूर्ण लाभ नहीं मिल पIता है।

 

 

इस प्रकार से अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए अनेकों विधाओं का पालन किया जा सकता है जो हमारे लिए लाभप्रद होंगे । यहां यह स्पष्ट हो चुका है कि कर्मचारियों का अच्छा या खराब स्वास्थ्य किसी भी संस्था की उत्पादकता को प्रभावित करता है। लेकिन यहां प्रश्न यह है कि अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखना क्या सिर्फ कर्मचारियों की ही जिम्मेदारी है या फिर संस्था की ओर से भी कुछ प्रयास होना चाहिए। कुछ संस्थाएं इसके लिए प्रयास करती भी हैं, जैसे- खेलकूद की प्रतियोगिताओं का आयोजन, जिम की व्यवस्था आदि। परंतु उपयुक्त यह होगा कि, जैसे संस्थाएं अपने कर्मचारियों को कार्यस्थल में प्रशिक्षित करती हैं, ठीक वैसे ही उन्हें अपने कर्मचारियों के अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए उन्हें प्रेरित और प्रशिक्षित करें । इससे न सिर्फ उनका स्वास्थ्य अच्छा होगा बल्कि संस्था की उत्पादकता में भी अभिवृद्धि होगी और उन कर्मचारियों का पारिवारिक जीवन भी खुशहाल होगा।

 

 

 

कुमार निशीथ

मुख्य प्रबंधक(प्रशिक्षण)

भारतीय स्टेट बैंक ज्ञानार्जन एवं विकास संस्थान,पटना.

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